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आज भारत के बुद्धिजीवी
अपने दायित्व को भुलाकर,
संवैधानिक विचारों से उठकर,
जाति - धर्मों के बनते है रक्षक,
तो कभी बोतलें और नोटों के मोहताज,
काले चस्में पहन कर आते है मतदान,
बना देते हैं लोकतंत्र की सरकार।
फिर उनसे ही मांग रहे है अधिकार।
जो सही - गलत के पहलू को नोटों से घुमाते हैं,
हाथों में गबन का मेहंदी सजाते हैं,
मदारी बन उसी बुद्धिजीवी को नचाते है,
फिर सफेद लिबास में बन जाते है,सच्चा सरकार,
भारत के बुद्धिजीवी उन्ही
से मांग रहा है अधिकार।।।।
Aniket Yadav

