https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ हिन्दी दिवस के अवसर पर हिंदी भाषा की स्तिथि का चिंतन एक कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं। आज हिंदी बनी है द्रोपदी, आज हिंदी बनी है द्रोपदी, दुर्योधन रूपी अंग्रजी खींच रहे चीर। संस्कृत जिससे उत्पन हुआ हिंदी, आज वह पितामह रूपी , लाचार हाथ मल रहे। और अंग्रजी विद्यालय कौरव बन , भारतवर्ष की लाज,गौरव को नष्ट कर रहे। जिसने भारत को मान,सम्मान और प्रतिष्ठा दिया , आज वही अपने लाज के लिए विलख रही, अपने ही देश में सह रही अत्याचार। और हम चंद कवि और लेखकगन, पांडव रूपी तमाशा देख रहे, अपने प्रतिष्ठा हेतु हिंदी को दाव पर रख रहे, चित पर शीला रख है लाचार विफल परे । आज आस लगा बैठा है भारतवर्ष , कोई कृष्ण आकर इसकी लाज बचाए। आज हिंदी बनी है द्रोपदी, अंग्रेजी खींच रहे हैं चीर, आकर इनकी लाज बचाओ, हे प्रभु कृष्ण जी। ANIKET YADAV