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Showing posts from October 3, 2021

आज हिंदी बनी है द्रोपदी

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ हिन्दी दिवस के अवसर पर हिंदी भाषा की स्तिथि का चिंतन एक कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं। आज हिंदी बनी है द्रोपदी, आज हिंदी बनी है द्रोपदी, दुर्योधन रूपी अंग्रजी खींच रहे चीर। संस्कृत जिससे उत्पन हुआ हिंदी, आज वह पितामह रूपी , लाचार हाथ मल रहे। और अंग्रजी विद्यालय कौरव बन , भारतवर्ष की लाज,गौरव को नष्ट कर रहे। जिसने भारत को मान,सम्मान और प्रतिष्ठा दिया , आज वही अपने लाज के लिए विलख रही, अपने ही देश में सह रही अत्याचार। और हम चंद कवि और लेखकगन, पांडव रूपी तमाशा देख रहे, अपने प्रतिष्ठा हेतु हिंदी को दाव पर रख रहे, चित पर शीला रख है लाचार विफल परे । आज आस लगा बैठा है भारतवर्ष , कोई कृष्ण आकर इसकी लाज बचाए। आज हिंदी बनी है द्रोपदी, अंग्रेजी खींच रहे हैं चीर, आकर इनकी लाज बचाओ,  हे प्रभु कृष्ण जी।                ANIKET YADAV

राधाकृष्ण की प्रेम कविता Radhakrishna ki prem kavita ❤️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ राधाकृष्ण जी की पावन  प्रेम पर आदरणीय श्री अच्युत कुलकर्णी जी की लिखी सुंदर रचना । वृंदावन की धरती पावन प्रेम में मस्त है  राधा जी के प्यार में पुलकित वृंदावन है मासूम भरी राधा जी की मुख मंडल पर  कृष्ण नचाते रहे हमेशा प्यार की धुन पर राधाजी ने जिया है तो सिर्फ कृष्ण के लिए उसने अगर नाचा है तो सिर्फ भगवान के लिए हर सांस उनकी चली कृष्ण को पुकारते हर पल राधाजी जिए मुरली के धुन सुनते एक पल राह देखना तो एक पल तो रोना भी कृष्ण के विरह में दिन भर खोना भी राधाजी ने तो जन्म सार्थक कर लिए प्रभू के ध्यान में जीवन समर्पित कर दिए कल की राह देखते हर पल जीते रहे आज नहीं तो कल कृष्ण के आने की सोचते रहे कृष्ण ने तड़पाए कितने बार राधाजी को हर बार राधाजी सफल किए कृष्ण की परीक्षा को चेहरा जब खिलता था कृष्ण को देखकर राधाजी मुस्कुराते थे अपने प्यार को पाकर दिल की खुशी मुख पर जरूर दिखाता था कृष्ण का मुस्कान भी राधा की चेहरे में था।। ✍️ACHYUT KULKARANI  

मेरा जन्म तो वृंदावन में ही होना था।

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ दोस्तों, आज आज बहुत खुशी के साथ आदरणीय अच्युत कुलकर्णी जी की लिखी कविता प्रकाशित कर रहे हैं। मेरा जनम तो वृंदावन में ही होना था, राधा जी के सखि बनके ही रहना था, राधाकृष्ण के मिलन हर दिन देखता, अपने जन्मों का जीवन पावन करता । बस यहां के मिट्टी या धूल तो हो जाता, राधाकृष्ण के चरण मुझे छूकर तो जाता, उनके प्यार के आहत को तो जी लेता, हर दिन का जीवन खुशबू  से भर देता। उस वृंदावन के पेड़ पौंधे तो बनके रहता, सुंदर फूल मेरे कृष्ण के हात जो लगता, वही फूल जब राधा जी के सिर चढ़ जाता, जीवन मेरे सच में कितना पावन होजता। यमुना नदी के बहता पानी तो बन जाता, कृष्ण के सारे खेलकूद हर दिन देख पाता, यमुना पानी से जब उनको ठंडक मिलता, अपना जीवन तो सच में सफल बन जाता। कृष्ण के बांसुरी भी बन जाता तो क्या होता, अपने धुन से राधा जी के प्यार और बढ़ता, प्रेम में जब राधाकृष्ण दोनों डूबे हुए दिखते, देखते हुए अपना जीवन धन्य कर तो लेते। Respected ACHYUT KULKARANI

जो बीत गई सो बात गई( jo bit gai so bat gai)

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ जो बीत गई सो बात गई(हरिवंश राय बच्चन) जो बीत गई सो बात गई जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वह डूब गया तो डूब गया अम्बर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे तारों पर कब अम्बर शोक मनाता है जो बीत गई सो बात गई जीवन में वह था एक कुसुम थे उसपर नित्य निछावर तुम वह सूख गया तो सूख गया मधुवन की छाती को देखो सूखी कितनी इसकी कलियाँ मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली पर बोलो सूखे फूलों पर कब मधुवन शोर मचाता है जो बीत गई सो बात गई जीवन में मधु का प्याला था तुमने तन मन दे डाला था वह टूट गया तो टूट गया मदिरालय का आँगन देखो कितने प्याले हिल जाते हैं गिर मिट्टी में मिल जाते हैं जो गिरते हैं कब उठतें हैं पर बोलो टूटे प्यालों पर कब मदिरालय पछताता है जो बीत गई सो बात गई मृदु मिटटी के हैं बने हुए मधु घट फूटा ही करते हैं लघु जीवन लेकर आए हैं प्याले टूटा ही करते हैं फिर भी मदिरालय के अन्दर मधु के घट हैं मधु प्याले हैं जो मादकता के मारे हैं वे मधु लूटा ही करते हैं वह कच्चा पीने वाला है ज...

यह मंदिर का दीप (Yah Mandir ka dip)

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ नमस्कार दोस्तों , यह महादेवी वर्मा की लिखी श्रेष्ठ  कविताओं में से एक है "यह मंदिर का दीप" यह मंदिर का दीप यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो  रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर, गये आरती वेला को शत-शत लय से भर, जब था कल कंठो का मेला, विहंसे उपल तिमिर था खेला, अब मन्दिर में इष्ट अकेला, इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!   चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली, प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली, झर सुमन बिखरे अक्षत सित, धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित  तम में सब होंगे अन्तर्हित, सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!   पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया, प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया, सांसों की समाधि सा जीवन, मसि-सागर का पंथ गया बन रुका मुखर कण-कण स्पंदन, इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो! झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी, जब तक लौटे दिन की हलचल, तब तक यह जागेगा प्रतिपल, रेखाओं में भर आभा-जल दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो! Mahadevi Verma.....