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Showing posts from July 4, 2021

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https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ खुद को खुदा से अर्जमन्द मान ली। हमने इश्क की आरजू क्या कर दिए, यूं ही कुछ दिन उदास तो हुए, ओ मेरे गम का बादशाह बन गई।।                             Aniket Yadav

भोपाल त्रासदी✍️ Bhopal trasadi ✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ वही अमन की रात काली रात में बदली हवा में उड़ा जहर अंधाधुंध भागते पैर कटे वृक्ष की तरह गिरते लोग भीषण ठंड में सांसों में अंदर घुलता जहर।   हर कोई नीलकंठ तो नहीं हो सकता जो निगल ले उस हलाहल को रोते-बिलखते बच्चे श्मशान बनती भोपाल की सड़कें बिखरे शव। और लहराता एंडरसन किसी प्रेत की तरह अट्ठहास लगाता उड़ गया हमारे खुद के अपने पिशाचों की मदद से पीछे छोड़ गया कई हजार लाशें।   आर्तनाद, चीखें अंधे, बहरे चमड़ी उधड़े चेहरे लाखों मासूमों को जो आज भी  भुगत रहे हैं उन क्षणों को जब एक जहर उतरा था भोपाल की सड़कों पर।                 Aniket Yadav 🙏

कैसा जुड़ाव है मेरा ❤️ kaisa judaw h mera

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ कैसा जुड़ाव है मेरा, वह ज्योति है मेरे  हृदय के ज्वलित दीप का। वह हंसे तो लगता प्रस्ताव मंजूर है, जब व्यंग करे तो लगे , मैं लायक नहीं हूं उनका। कैसा जुड़ाव है मेरा, गुस्सा करे तो लगे, कोई तेज हवा का झोंका  चला, ये दीपक कैसे जल पाएगा, यही सोचकर हृदय सहम जाता। ये कैसा जुड़ाव है मेरा।।। ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️                         Aniket Yadav  Guest:।      Raushan mandal 🙏

प्रभु (एक कहानी) ✍️brabhu ek story ✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ *शुभ प्रभात*  *एक सब्ज़ी वाला था। सब्ज़ी की पूरी दुकान ठेले पर लगा कर घूमता रहता था। "प्रभु" शब्द उसका तकिया कलाम था।*  *कोई पूछता आलू कैसे दिये, 10 रुपये प्रभु, हरा धनीया है क्या? बिलकुल ताज़ा है प्रभु ।*  *वह सबको प्रभु ही बुलाता था। लोग भी उसको प्रभु कहकर पुकारने लगे।*  *एक दिन उससे किसी ने पूछा.. तुम सबको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हो, यहाँ तक तुम्हे भी लोग इसी उपाधि से बुलाते हैं, तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं?* *सब्जी वाले ने कहा... है न प्रभु! मेरा नाम कन्हैयालाल है। प्रभु, मैं शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ।मैं बहुत गरीब था और गांव में मज़दूरी करता था । एक बार मेरे गांव में एक बहुत प्रसिद्ध सन्त के प्रवचन हुए। प्रवचन बिलकुल मेरे समझ में नहीं आता था लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग़ में आकर फँस गई। उन संत ने कहा था कि हर इंसान में प्रभु का वास है। तलाशने की कोशिश तो करो , पता नहीं किस इंसान के रूप में औऱ कहाँ प्रभु मिल जाए और तुम्हारा उद्धार कर जाए।*  *बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को प्रभु की नज़र से देखना और पुकारना शुरू कर दि...

मधुशाला✍️✍️ madhushala

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ हरिवंश राय बच्‍चन,,, मधुशाला....     मदिरालय जाने को घर से  चलता है पीनेवाला,  'किस पथ से जाऊं?'  असमंजस में है वह भोलाभाला;  अलग-अलग पथ बतलाते सब  पर मैं यह बतलाता हूं- राह पकड़ तू एक चला चल,  पा जाएगा मधुशाला'।   पौधे आज बने हैं साकी  ले-ले फूलों का प्याला,  भरी हुई है जिनके अंदर  परिमल-मधु-सुरभित हाला,  मांग-मांगकर भ्रमरों के दल  रस की मदिरा पीते हैं,  झूम-झपक मद-झंपित होते,  उपवन क्या है मधुशाला!   एक तरह से सबका स्वागत  करती है साकीबाला,  अज्ञ-विज्ञ में है क्या अंतर  हो जाने पर मतवाला,  रंक-राव में भेद हुआ है  कभी नहीं मदिरालय में,  साम्यवाद की प्रथम प्रचारक  है यह मेरी मधुशाला।   छोटे-से जीवन में कितना  प्यार करूं, पी लूं हाला,  आने के ही साथ जगत में  कहलाया 'जानेवाला',  स्वागत के ही साथ विदा की  होती देखी तैयारी,  बंद लगी होने खुलते ही  मेरी जीवन-मधुशाला! 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

जो तुम आ जाते एक बार /

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ जो तुम आ जाते एक बार /  महादेवी वर्मा »  जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार हँस उठते पल में आर्द्र नयन धुल जाता होठों से विषाद छा जाता जीवन में बसंत लुट जाता चिर संचित विराग आँखें देतीं सर्वस्व वार जो तुम आ जाते एक बार 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ मधुर-मधुर मेरे दीपक जल !  /  महादेवी वर्मा  मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! तारे शीतल कोमल नूतन माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं हाय, न जल पाया तुझमें मिल! सिहर-सिहर मेरे दीपक जल! जलते नभ में देख असंख्यक स्नेह-हीन नित कितने दीपक जलमय सागर का उर जलता; विद्युत ले घिरता है बादल! विहँस-विहँस मेरे दीपक जल! द्रुम के अंग हरित कोमलतम ज्वाला को करते हृदयंगम वसुधा के जड़ अन्तर में भी बन्दी है तापों की हलचल; बिखर-बिखर मेरे दीपक जल! मेरे निस्वासों से द्रुततर, सुभग न तू बुझने का भय कर। मैं अंचल की ओट किये हूँ! अपनी मृदु पलकों से चंचल सहज-सहज मेरे दीपक जल! सीमा ही लघुता का बन्धन है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन मैं दृग के अक्षय कोषों से- तुझमें भरती हूँ आँसू-जल! सहज-सहज मेरे दीपक जल! तुम असीम तेरा प्रकाश चिर खेलेंगे नव खेल निरन्तर, तम के अणु-अणु में विद्यु...