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अब हम अजनबियों से डरते है,
मन के भवरें को मुट्ठी में बंद रखते है।
रात वही, ख्वाब वही,
कभी आंखे उनकी कल्पनाओं में खोए रहते थे,
आज उन्ही के यादों में रोते हैं,
सारी रात करवट बदल बदल कर बिताते हैं।
अब हम अजनबियों से डरते है।
वही जानी पहचानी राह,वही बाग,
कभी घंटों हमारा इंतजार करते थे,
जहां हम जिंदगी को थाम कर,
प्यार के धुन गुनगुनाते थे,
अब वही मानो ठोकर मार भगाते है।
अब हम अजनबियों से डरते है,
मन के भवरें को मुट्ठी में बंद रखते हैं।
मन वही और उसका भवारां वही,
कभी सारे बागों का सैर करता था,
उस गुल के डाली पर कांटा चुभा जिस दिन से,
अब अनजाने बागों में जाने से घबराते है, 🌺
मन के भवरें को मुट्ठी में बंद रखते हैं।
लेखक वही ,लेखनी वही,
कभी प्रेम राग लिखते थे,
आज जो विराग व्याथा लिखते हैं,
अब हम अजनबियों से डरते हैं।।।
Aniket yadav

