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वक्त⏱️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/    वक्त वक्त जब ,वक्त से गुजरता है, टिक- टिक - टिक  कर चलता जाता है। कई मुसाफिर मिलते हैं,कई बिछड़ते हैं, कोई खुशी तो कोई गम देते हैं। वक्त सारे तालिमों को संजोए रखते है। ठोकरें खा खा कर भी, खुशी के आशियाने की  तलाश में , लड़खड़ा लड़खड़ा कर भी चलता रहता है। वक्त जब वक्त से गुजरता है, टिक टिक कर चलता रहता है। बचपन के मौज , शरारते, जवानी की परेशानियां,बोझ और बुढ़ापे का दुःख - धीमी धीमी कदमों से गुजरता जाता है, वक्त से परेशान होकर व्यक्ति, वक्त के रूकने की आस में थक-हार कर बैठ जाता है। वक्त जब ,वक्त से गुजरता है, टिक- टिक - टिक  कर चलता जाता है। हर किसी का एक वक्त, वक्त यूं ही गुजड़ जाता है। ✍️Aniket Yadav

शायरी

🌺https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ ये कसूर सिर्फ तेरा है ,या मेरा भी 'खुदा जाने! तकलीफ मुझे तो होती है। तेरा यूं ही नजरें झुका कर,  बिना जवाब दिए चले जाना, यही मुझे बेचैन करती है।।।                Aniket Yadav

अब मौन रहता हूं ( ab maun rahata hu)

🙏https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ मैं अब मौन रहता हूं, तेरे चले जाने के बाद... ऐसा नहीं है की मुझे अब कुछ भी बोलना पसंद नहीं है... मुझे पसंद तो आज भी है, तुमसे घंटो बाते करना, तेरे संग रहो में चलते जाना, दूर तक चल के खो जाना, नदी किनारे बैठे रहना, तुम्हारे बातों में खो जाना। मुझे आज भी पसंद है.... तेरे मुस्कान पे दीवाना हो जाना, तेरे गम में बैठ के साथ रोना, तेरे लिए तोहफा को संभाल के रखना, तेरे हर जिद को पूरा करना, तेरे बातों को बहुत देर तक सोचते रहना, और फिर तुम्हारे साथ अपने लक्ष्यों की ओर निकल जाना, मुझे आज भी पसंद है।। लेकिन अब मैं मौन रहता हूं क्योंकि, सुनने के लिए तुम नहीं हो, सलाह के लिए तुम्हारा साथ नही है, मुस्कुराने के लिए तुम्हारा हंसी नहीं है, रोने के लिए तुम्हारा कंधा नही है, तेरी मुस्कान.. बस तस्बीरो तक सिमट के रह गई है। तेरा हमसफर अब तुम्हारे बिन अकेला चलना नही चाहता, लेकिन चलता हु मै तो बस अपने लक्ष्यों को पाने के लिए, क्योंकि अब मेरे पास तुम नहीं हो, इसलिए सचमुच मौन हो गया हूं। मैं तेरे जाने के बाद अकेला सा हो गया हूं, और खुद को कैद कर लिया हूं एक छोटे से कमरे म...

आज हिंदी बनी है द्रोपदी

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ हिन्दी दिवस के अवसर पर हिंदी भाषा की स्तिथि का चिंतन एक कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं। आज हिंदी बनी है द्रोपदी, आज हिंदी बनी है द्रोपदी, दुर्योधन रूपी अंग्रजी खींच रहे चीर। संस्कृत जिससे उत्पन हुआ हिंदी, आज वह पितामह रूपी , लाचार हाथ मल रहे। और अंग्रजी विद्यालय कौरव बन , भारतवर्ष की लाज,गौरव को नष्ट कर रहे। जिसने भारत को मान,सम्मान और प्रतिष्ठा दिया , आज वही अपने लाज के लिए विलख रही, अपने ही देश में सह रही अत्याचार। और हम चंद कवि और लेखकगन, पांडव रूपी तमाशा देख रहे, अपने प्रतिष्ठा हेतु हिंदी को दाव पर रख रहे, चित पर शीला रख है लाचार विफल परे । आज आस लगा बैठा है भारतवर्ष , कोई कृष्ण आकर इसकी लाज बचाए। आज हिंदी बनी है द्रोपदी, अंग्रेजी खींच रहे हैं चीर, आकर इनकी लाज बचाओ,  हे प्रभु कृष्ण जी।                ANIKET YADAV

राधाकृष्ण की प्रेम कविता Radhakrishna ki prem kavita ❤️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ राधाकृष्ण जी की पावन  प्रेम पर आदरणीय श्री अच्युत कुलकर्णी जी की लिखी सुंदर रचना । वृंदावन की धरती पावन प्रेम में मस्त है  राधा जी के प्यार में पुलकित वृंदावन है मासूम भरी राधा जी की मुख मंडल पर  कृष्ण नचाते रहे हमेशा प्यार की धुन पर राधाजी ने जिया है तो सिर्फ कृष्ण के लिए उसने अगर नाचा है तो सिर्फ भगवान के लिए हर सांस उनकी चली कृष्ण को पुकारते हर पल राधाजी जिए मुरली के धुन सुनते एक पल राह देखना तो एक पल तो रोना भी कृष्ण के विरह में दिन भर खोना भी राधाजी ने तो जन्म सार्थक कर लिए प्रभू के ध्यान में जीवन समर्पित कर दिए कल की राह देखते हर पल जीते रहे आज नहीं तो कल कृष्ण के आने की सोचते रहे कृष्ण ने तड़पाए कितने बार राधाजी को हर बार राधाजी सफल किए कृष्ण की परीक्षा को चेहरा जब खिलता था कृष्ण को देखकर राधाजी मुस्कुराते थे अपने प्यार को पाकर दिल की खुशी मुख पर जरूर दिखाता था कृष्ण का मुस्कान भी राधा की चेहरे में था।। ✍️ACHYUT KULKARANI  

मेरा जन्म तो वृंदावन में ही होना था।

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ दोस्तों, आज आज बहुत खुशी के साथ आदरणीय अच्युत कुलकर्णी जी की लिखी कविता प्रकाशित कर रहे हैं। मेरा जनम तो वृंदावन में ही होना था, राधा जी के सखि बनके ही रहना था, राधाकृष्ण के मिलन हर दिन देखता, अपने जन्मों का जीवन पावन करता । बस यहां के मिट्टी या धूल तो हो जाता, राधाकृष्ण के चरण मुझे छूकर तो जाता, उनके प्यार के आहत को तो जी लेता, हर दिन का जीवन खुशबू  से भर देता। उस वृंदावन के पेड़ पौंधे तो बनके रहता, सुंदर फूल मेरे कृष्ण के हात जो लगता, वही फूल जब राधा जी के सिर चढ़ जाता, जीवन मेरे सच में कितना पावन होजता। यमुना नदी के बहता पानी तो बन जाता, कृष्ण के सारे खेलकूद हर दिन देख पाता, यमुना पानी से जब उनको ठंडक मिलता, अपना जीवन तो सच में सफल बन जाता। कृष्ण के बांसुरी भी बन जाता तो क्या होता, अपने धुन से राधा जी के प्यार और बढ़ता, प्रेम में जब राधाकृष्ण दोनों डूबे हुए दिखते, देखते हुए अपना जीवन धन्य कर तो लेते। Respected ACHYUT KULKARANI

जो बीत गई सो बात गई( jo bit gai so bat gai)

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ जो बीत गई सो बात गई(हरिवंश राय बच्चन) जो बीत गई सो बात गई जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वह डूब गया तो डूब गया अम्बर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे तारों पर कब अम्बर शोक मनाता है जो बीत गई सो बात गई जीवन में वह था एक कुसुम थे उसपर नित्य निछावर तुम वह सूख गया तो सूख गया मधुवन की छाती को देखो सूखी कितनी इसकी कलियाँ मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली पर बोलो सूखे फूलों पर कब मधुवन शोर मचाता है जो बीत गई सो बात गई जीवन में मधु का प्याला था तुमने तन मन दे डाला था वह टूट गया तो टूट गया मदिरालय का आँगन देखो कितने प्याले हिल जाते हैं गिर मिट्टी में मिल जाते हैं जो गिरते हैं कब उठतें हैं पर बोलो टूटे प्यालों पर कब मदिरालय पछताता है जो बीत गई सो बात गई मृदु मिटटी के हैं बने हुए मधु घट फूटा ही करते हैं लघु जीवन लेकर आए हैं प्याले टूटा ही करते हैं फिर भी मदिरालय के अन्दर मधु के घट हैं मधु प्याले हैं जो मादकता के मारे हैं वे मधु लूटा ही करते हैं वह कच्चा पीने वाला है ज...

यह मंदिर का दीप (Yah Mandir ka dip)

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ नमस्कार दोस्तों , यह महादेवी वर्मा की लिखी श्रेष्ठ  कविताओं में से एक है "यह मंदिर का दीप" यह मंदिर का दीप यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो  रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर, गये आरती वेला को शत-शत लय से भर, जब था कल कंठो का मेला, विहंसे उपल तिमिर था खेला, अब मन्दिर में इष्ट अकेला, इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!   चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली, प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली, झर सुमन बिखरे अक्षत सित, धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित  तम में सब होंगे अन्तर्हित, सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!   पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया, प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया, सांसों की समाधि सा जीवन, मसि-सागर का पंथ गया बन रुका मुखर कण-कण स्पंदन, इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो! झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी, जब तक लौटे दिन की हलचल, तब तक यह जागेगा प्रतिपल, रेखाओं में भर आभा-जल दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो! Mahadevi Verma.....

औकात aukaat

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ Bure halaton ka aukat nahi,  Jo mujhe dard de,  Dard to O de jate hai,  jo apane ;  aukat dika dete...  ANIKET  YADAV

Love sayari (प्रेम शायरी)❤️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/    उसने तो झूठ बोल बोल कर, मेरी उम्मीद न होने दिया कम । कसूर मेरा भी क्या था , मैं तो सच का इंतजार किया, बस वही सच न हो पाई।।         🌺🌺🌺🌺🌺🌺 Aniket Yadav।

डियर जिन्दगी ❤️dear jindgi

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ ये संसार बना है न्यायलय, कोई बना न्यायधीश,  तो कोई खड़ा मुजरिम है। सब मसला है,  खुद को सही साबित करने की     जैसे ये जिंदगी, जिंदगी नहीं कोई इल्जाम है। हर दिन गुजरता केवल न्याय में, अपनों में अपना को तलासना में,  !!!        ✍️Premchand goit Aniket Yadav 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

प्रेम क्या है।❤️prem kya h

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ प्रेम क्या है।।।। प्रकृति  परिवर्तनशील है,  और  मानव भी । क्या प्रेम आत्मा का भाव है ? नहीं वह तो अमर है, आत्मा का मेल है। प्रेम धुरी है,मानव रूपी रथ का, चालक राह भटकता है, दिशाहीन विचरता है, प्रेम तो अचल है, मानव के साथ  है। प्रेम भक्ति का अंश है, ईश्वर के दृष्टि में सर्वोपरि है, सच्चा प्रेम समाज के बंधन से मुक्त है, प्रेम तो पवित्र है, धर्मों के निर्वाहक है। संसार में केवल प्रेम सत्य है।।।।                    Aniket Yadav

तब कोई आवाज नहीं उठाता ..❤️ Tab koi awaj nhi uthata

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ तब कोई आवाज नहीं उठाता ..   सवाल उठाते हैं लोग,  की होली के रंग जहरीले, दिवाली के पटाखे विषैले, गणेश पूजा में समुंदर का विनाश, दुर्गा पूजा में नदियों का सर्वनाश, जब बकरीद में.. बहे खून की नदियां, तब कोई आवाज नहीं उठाता । सवाल उठाते हैं लोग ,,,, कि कुंभ का मेला फैलाए बीमारी,   कांवरिया लाए महामारी , जब सैलाब उमड़े बाजारों में,   करने ईद की खरीदारी , तब कोई आवाज क्यों नहीं उठाता।   सवाल उठाते हैं लोग,,,,  कि सरकार है नाकाम, ऑक्सीजन उपलब्ध कराना , केवल उसी का काम ,, जब तोड़ के लोक डाउन,  घूमते हैं लोग चाइना टाउन,   ना दो गज की दूरी ,ना मास्क जरूरी,   तब कोई सवाल नहीं उठाता ।   अपने घर में हिंदू है पराया,  अपनों ने ही है कहर ढाया,    भूल गए सनातन धर्म परमो धर्म,  कटती है जब निर्दोष गऊ माता,  तब कोई आवाज़ नहीं उठाता।। By ..Respected ✍️✍️ POONAM SONI =======================

चिंता और चिता ❤️chinta and chita

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/   चिंता और चिता मेरी चिंता को सहन कर मुस्कुरा लेती हो, मेरी चिता देख भी यूं मुस्कुरा लेना। मेरा हर रात तेरी ख्वाबों के बिन नहीं गुजराती हैं, हर छन् तेरी एहसाह रुलाती है, मेरी तड़प देख कर यूं मुस्कुरा लेती हो, मेरी चिता देख भी यूं मुस्कुरा लेना। ना इकरार करती हो ,ना तकरार करती हो, न जीने देती हो और न मरने देती हो, कभी हाथ थाम खुशी का वास्ता देती हो, अब मेरे संयम की अजमाइश की करती हो, मेरी चिंता देख कर भी यूं मुस्कुरा लेती हो, मेरी चिता देख भी यूं मुस्कुरा लेना।        Aniket Yadav

कोरोना की मार 💉corona ki mar

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ ना दवा मिलता,    ना हवा मिलती,  अस्पताल में दाखिले मे भी मार है,  जहाँ देखो लंबी लंबी कतार हैं , शायद ये तो नर संहार हैं,  नियंत्रण करने को पुरी फौज जुटी थी,  पुरा लोकतंत्र एकजुट था, दूसरी लहर की खबर किसी को न थी ,  तो क्या पुरा देश चैन की नींद ले रहा था।  Guest ✍🏻✍🏻 Pemchand goit

रहमतों की बारिश sahmaton ki baris❤️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ रहमतों की बारिश  खुली आँखों में सपना  किसी की खोज में फिर खो गया कौन गली में रोते-रोते सो गया कौन बड़ी मुद्दत से तन्हा थे मिरे दुःख ख़ुदाया मेरे आँसू रो गया कौन जला आई थी मैं तो आस्तीं तक लहू से मेरा दामन धो गया कौन जिधर देखूँ खड़ी है फ़स्ल-ए-गिरिया [1] मिरे शहरों में आँसू बो गया कौन अभी तक भाईयों में दुश्मनी थी ये माँ के ख़ूँ [2]  का प्यासा हो गया कौन.    Aniket Yadav 🙏

अधिकार। Adhikar✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/   अधिकार आज भारत के बुद्धिजीवी मांग रहा है अधिकार । अपने दायित्व को भुलाकर, संवैधानिक विचारों से उठकर, जाति - धर्मों के बनते है रक्षक, तो कभी बोतलें और नोटों के मोहताज, काले चस्में पहन कर आते है मतदान, बना देते हैं लोकतंत्र की सरकार। फिर उनसे ही मांग रहे है अधिकार। जो  सही - गलत के पहलू को नोटों से  घुमाते हैं, हाथों में गबन का मेहंदी सजाते हैं, मदारी बन उसी बुद्धिजीवी को नचाते है, फिर सफेद लिबास में बन जाते है, सच्चा सरकार, भारत के बुद्धिजीवी उन्ही से मांग रहा है अधिकार।।।।              Aniket Yadav

चांद का महत्व क्यों? Chand ka mahatva kyon h✍️

  चांद का महत्व चांदनी रात में 🌃 तारे टीम टिमा रहे थे तारो ने चतुराई से  पूछा पृथ्वी से संख्या हमरी ज्यादा  प्रकाश में भी हम अव्वल आकार भी हमारा  चांद से बहुत बड़ा फिर भी चांद का महत्व क्यों हमसे ज्यादा?🧐 पृथ्वी ने मुस्कुराते हुए कहा चांद के पास रोशनी नहीं फिर भी मुझे रोशन वो करता हर घड़ी मेरे संग वो रहता🤝 बड़े की परिभाषा आकार से नहीं  गुणों से होती👌 तारो को बुरा लगा  सुनकर यह उत्तर अब उन्होंने पृथ्वी को   कुछ यू फसाया😠 अमावसया के दिन वो  क्यों जाता है रुठ?🤨 पृथ्वी ने बहुत सुंदर उत्तर दिया यदि रिश्तों में अनबानी न हो तो उनकी कीमत कैसे समझोगे हर अमावस्या के बाद🌌  वो मुझे और रोशन कर देता हर अनबनी के बाद👨‍👨‍👧‍👦  रिश्ता और मज़बूत हो जाता यही रिश्तों की सच्चाई है यही रिश्तों की सुंदरता है💕          Guest     - ✍️ दीया कानूनगो💖                             Aniket Yadav             ...

अब हम अजनबियों से डरते हैं ✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ अब हम अजनबियों से डरते है, मन के भवरें को मुट्ठी में बंद रखते है। रात वही, ख्वाब वही, कभी आंखे उनकी कल्पनाओं में खोए रहते थे, आज उन्ही के यादों में रोते हैं, सारी रात करवट बदल बदल कर बिताते हैं। अब हम अजनबियों से डरते है। वही जानी पहचानी राह,वही बाग, कभी घंटों हमारा इंतजार करते थे, जहां हम जिंदगी को थाम कर, प्यार के धुन गुनगुनाते थे, अब वही मानो ठोकर मार भगाते है। अब हम अजनबियों से डरते है, मन के भवरें को मुट्ठी में बंद रखते हैं। मन वही और उसका भवारां वही, कभी सारे बागों का सैर करता था, उस गुल के डाली पर कांटा चुभा जिस दिन से, अब अनजाने बागों में जाने से घबराते है,    🌺 अब हम अजनबियों से डरते है,         🏵️🥀 मन के भवरें को मुट्ठी में बंद रखते हैं। लेखक वही ,लेखनी वही, कभी प्रेम राग लिखते थे, आज जो विराग व्याथा लिखते हैं, अब हम अजनबियों से डरते हैं।।।                           Aniket yadav

❤️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ खुद को खुदा से अर्जमन्द मान ली। हमने इश्क की आरजू क्या कर दिए, यूं ही कुछ दिन उदास तो हुए, ओ मेरे गम का बादशाह बन गई।।                             Aniket Yadav

भोपाल त्रासदी✍️ Bhopal trasadi ✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ वही अमन की रात काली रात में बदली हवा में उड़ा जहर अंधाधुंध भागते पैर कटे वृक्ष की तरह गिरते लोग भीषण ठंड में सांसों में अंदर घुलता जहर।   हर कोई नीलकंठ तो नहीं हो सकता जो निगल ले उस हलाहल को रोते-बिलखते बच्चे श्मशान बनती भोपाल की सड़कें बिखरे शव। और लहराता एंडरसन किसी प्रेत की तरह अट्ठहास लगाता उड़ गया हमारे खुद के अपने पिशाचों की मदद से पीछे छोड़ गया कई हजार लाशें।   आर्तनाद, चीखें अंधे, बहरे चमड़ी उधड़े चेहरे लाखों मासूमों को जो आज भी  भुगत रहे हैं उन क्षणों को जब एक जहर उतरा था भोपाल की सड़कों पर।                 Aniket Yadav 🙏

कैसा जुड़ाव है मेरा ❤️ kaisa judaw h mera

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ कैसा जुड़ाव है मेरा, वह ज्योति है मेरे  हृदय के ज्वलित दीप का। वह हंसे तो लगता प्रस्ताव मंजूर है, जब व्यंग करे तो लगे , मैं लायक नहीं हूं उनका। कैसा जुड़ाव है मेरा, गुस्सा करे तो लगे, कोई तेज हवा का झोंका  चला, ये दीपक कैसे जल पाएगा, यही सोचकर हृदय सहम जाता। ये कैसा जुड़ाव है मेरा।।। ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️                         Aniket Yadav  Guest:।      Raushan mandal 🙏

प्रभु (एक कहानी) ✍️brabhu ek story ✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ *शुभ प्रभात*  *एक सब्ज़ी वाला था। सब्ज़ी की पूरी दुकान ठेले पर लगा कर घूमता रहता था। "प्रभु" शब्द उसका तकिया कलाम था।*  *कोई पूछता आलू कैसे दिये, 10 रुपये प्रभु, हरा धनीया है क्या? बिलकुल ताज़ा है प्रभु ।*  *वह सबको प्रभु ही बुलाता था। लोग भी उसको प्रभु कहकर पुकारने लगे।*  *एक दिन उससे किसी ने पूछा.. तुम सबको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हो, यहाँ तक तुम्हे भी लोग इसी उपाधि से बुलाते हैं, तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं?* *सब्जी वाले ने कहा... है न प्रभु! मेरा नाम कन्हैयालाल है। प्रभु, मैं शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ।मैं बहुत गरीब था और गांव में मज़दूरी करता था । एक बार मेरे गांव में एक बहुत प्रसिद्ध सन्त के प्रवचन हुए। प्रवचन बिलकुल मेरे समझ में नहीं आता था लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग़ में आकर फँस गई। उन संत ने कहा था कि हर इंसान में प्रभु का वास है। तलाशने की कोशिश तो करो , पता नहीं किस इंसान के रूप में औऱ कहाँ प्रभु मिल जाए और तुम्हारा उद्धार कर जाए।*  *बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को प्रभु की नज़र से देखना और पुकारना शुरू कर दि...

मधुशाला✍️✍️ madhushala

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ हरिवंश राय बच्‍चन,,, मधुशाला....     मदिरालय जाने को घर से  चलता है पीनेवाला,  'किस पथ से जाऊं?'  असमंजस में है वह भोलाभाला;  अलग-अलग पथ बतलाते सब  पर मैं यह बतलाता हूं- राह पकड़ तू एक चला चल,  पा जाएगा मधुशाला'।   पौधे आज बने हैं साकी  ले-ले फूलों का प्याला,  भरी हुई है जिनके अंदर  परिमल-मधु-सुरभित हाला,  मांग-मांगकर भ्रमरों के दल  रस की मदिरा पीते हैं,  झूम-झपक मद-झंपित होते,  उपवन क्या है मधुशाला!   एक तरह से सबका स्वागत  करती है साकीबाला,  अज्ञ-विज्ञ में है क्या अंतर  हो जाने पर मतवाला,  रंक-राव में भेद हुआ है  कभी नहीं मदिरालय में,  साम्यवाद की प्रथम प्रचारक  है यह मेरी मधुशाला।   छोटे-से जीवन में कितना  प्यार करूं, पी लूं हाला,  आने के ही साथ जगत में  कहलाया 'जानेवाला',  स्वागत के ही साथ विदा की  होती देखी तैयारी,  बंद लगी होने खुलते ही  मेरी जीवन-मधुशाला! 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

जो तुम आ जाते एक बार /

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ जो तुम आ जाते एक बार /  महादेवी वर्मा »  जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार हँस उठते पल में आर्द्र नयन धुल जाता होठों से विषाद छा जाता जीवन में बसंत लुट जाता चिर संचित विराग आँखें देतीं सर्वस्व वार जो तुम आ जाते एक बार 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल✍️

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ मधुर-मधुर मेरे दीपक जल !  /  महादेवी वर्मा  मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! तारे शीतल कोमल नूतन माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं हाय, न जल पाया तुझमें मिल! सिहर-सिहर मेरे दीपक जल! जलते नभ में देख असंख्यक स्नेह-हीन नित कितने दीपक जलमय सागर का उर जलता; विद्युत ले घिरता है बादल! विहँस-विहँस मेरे दीपक जल! द्रुम के अंग हरित कोमलतम ज्वाला को करते हृदयंगम वसुधा के जड़ अन्तर में भी बन्दी है तापों की हलचल; बिखर-बिखर मेरे दीपक जल! मेरे निस्वासों से द्रुततर, सुभग न तू बुझने का भय कर। मैं अंचल की ओट किये हूँ! अपनी मृदु पलकों से चंचल सहज-सहज मेरे दीपक जल! सीमा ही लघुता का बन्धन है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन मैं दृग के अक्षय कोषों से- तुझमें भरती हूँ आँसू-जल! सहज-सहज मेरे दीपक जल! तुम असीम तेरा प्रकाश चिर खेलेंगे नव खेल निरन्तर, तम के अणु-अणु में विद्यु...

कास मुझे टोक देता,

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺              मुझे टोक देता, कास कोई आज मुझे टोक देता, मेरे मन को रोक लेता। अज्ञानी से ज्ञान प्रसंग कर दिया, अशिक्षित को शिक्षा का पाठ पढ़ाने लगा, अंजाम तो सब जानते क्या होगा, कुछ तो बुरा होगा, कास कोई मुझे टोक देता। स्तिथि को संतुलन रखने में, गुस्ताखी कर बैठा । जो ज्ञानी था, उसके गलत में भी हामी कर दिया, अज्ञानी में भी थोड़ी कमी मिल गया, कोई माफ़ कर देता, अंजाम तो सब जानते है। तो कास कोई आज मुझे टोक देता, मेरे मन को रोक लेता।                Aniket Yadav🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
https://aniketkumarpoems.blogspot.com/ ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 खुद को खुदा से अर्जमन्द मान ली, हमने इश्क की आरजू क्या कर दिए, यूं ही कुछ दिन उदास तो हुए, ओ मेरे गम का बादशाह बन गई।।                                          Aniket Yadav 🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️

मन हो स्वतंत्र तुम्हारा,✍️. Man ho swantrata tumhara

https://aniketkumarpoems.blogspot.com/   🌺🌺मन हो स्वतंत्र तुम्हारा🌺🌺 मन हो स्वतंत्र तुम्हारा, तुम आत्मबल को सबल करो। जीवन हो सार्थक तुम्हारा, अपना लक्ष्य निर्धारित करो, रीतियों का बंधन तोड़ो, शिक्षा की सीढ़ियों पर बढ़ते चलो, अपने क्षमता का प्रमाण दो। मन हो स्वतंत्र तुम्हारा, जिम्मेदारी लो, अधिकारी बनो। आत्मविश्वास सबल हो तुम्हारा, समाज के चस्मे को उतार दो, क्रांति करो ,  अपने पंखों को फैलाव दो। मन हो स्वतंत्र तुम्हारा    ।।                          Aniket Yadav